मैं एमएसटीसी हूं

डॉ. सुनील कुमार साव
उ.प्र.(रा.भा.)

कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी और बहुत-सी सुनायी भी होंगी। उनमें से बहुत-सी कहानियां आज भी आपकी स्मृति में अपना स्थान बनाए हुए है। ऐसी ही एक कहानी है - मैं एमएसटीसी हूं। अर्थात कहानियों के संसार में मेरी भी एक कहानी है, मैं भी एक कहानी हूं, मैं एमएसटीसी हूं। तो आइए पढ़ते हैं एक कहानी, मेरी कहानी, एमएसटीसी की कहानी।

 

मेरा अस्तित्व 9 सितंबर 1964 को साकार होता है। आज 58 वर्षों बाद जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूं, तो अपने विकास को देखकर मैं अचरज में पड़ जाता हूं। यह अचरज तब और बढ़ जाता है, जब मैं बदलते भारत के साथ इस बदलाव को देखता हूं, बदलते विश्व के साथ इस बदलाव को देखता हूं।

 

मेरी स्मृति में आज भी वह दिन सुनहरे अक्षरों से अंकित है, जब मैं "मेटल स्क्रैप ट्रेड कॉर्पोरेशन लिमिटेड" के नाम से भौतिक जगत में पदार्पण करता हूं। मेरा यह आकार दूसरी पंचवर्षीय योजना का परिणाम था। दूसरी पंचवर्षीय योजना के तहत जब सारे देश में औद्योगिकरण की लहर चल रही थी; देश की जरूरत के हिसाब से देश के कोने-कोने में उद्योग-धंधे स्थापित किए जा रहे थे। स्वाधीन भारत औद्योगिक आत्मनिर्भरता के लिए नित-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा था। तभी औद्योगिक स्क्रैप का अनियंत्रित निपटान एक संकट बन कर उभर रहा था। देश के सफल औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक कचरे का नियंत्रित होना परम आवश्यक हो गया था।

 

आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है और इसी जननी के गर्भ से 9 सितंबर 1964 को जन्मा "मेटल स्क्रैप ट्रेड कॉर्पोरेशन लिमिटेड"। जन्म के समय जैसे होता है, बच्चे का हाव-भाव, रूप-रंग, नयन-नक्ष आदि देख कर बच्चे का घर का नाम रखा जाता है, वैसे ही मेरे कार्य क्षेत्र को देखकर मेरा नाम भी रख दिया गया था "मेटल स्क्रैप ट्रेड कॉर्पोरेशन लिमिटेड"। शीघ्र ही मुझे आरओसी द्वारा 12 अप्रैल, 1965 को व्यवसाय शुरू करने का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया था।कुछ-कुछ वैसे ही जैसे बच्चे के जन्म के बाद उसका जन्म प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है। अब मैं व्यवसाय जगत में अपनी यात्रा आरंभ करने के लिए तैयार हो गया था। भारत सरकार मेरे अभिभावक के रूप में मेरा पालन-पोषण कर रहे थे। उन्होंने मेरे सफल मार्गदर्शन के लिए इस्पात मंत्रालय को चुना और इस्पात मंत्रालय के मार्गदर्शन में मैं नित नए कार्य करने को अग्रसर हुआ।

 

अब जब मुझे स्क्रैप का ही प्रबंधन करना था तो मुझे गोंडवाना के विस्तृत औद्योगिक क्षेत्र के निकटतम महानगर में स्थापित किया गया और मेरा निगमित कार्यालय देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता में स्थापित हुआ। यहां से देश की पूर्वी औद्योगिक क्षेत्र के स्क्रैप का नियंत्रण सहज ही किया जा सकता था। धीरे-धीरे अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करते हुए मैंने पूरे देश के स्क्रैप को नियंत्रित करने का कार्य आरंभ किया। काम करते-करते एक समय ऐसा भी आया जब मुझे देश की सबसे बड़ी इस्पात कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की सहायक कंपनी(22 अगस्त, 1973) बनकर कार्य करने का गौरव प्राप्त हुआ। सेल के सहयोगी के रूप में काम करना मेरे लिए भी स्मरणीय था। अब मैं मेटल स्क्रैप के आयात के लिए भारत सरकार का कैनलाइजिंग ऐजेंट बनकर कार्य कर रहा था। समय का चक्का घूम रहा था और घूमते-घूमते वह समय भी आया जब मुझे एक स्वतंत्र कंपनी(21 मई, 1982) के रूप में स्थापित किया गया। इसके बाद मेरा कार्य क्षेत्र निरंतर बढ़ता रहा और मैंने देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी शाखाओं का विस्तार किया।

 

देश बदल रहा था और बदलते देश के साथ मैं भी बदल रहा था। यह वह दौर था जब पूरे देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का बोलबाला था। आर्थिक सुधार परम आवश्यक हो गया था। समय के साथ कदम से कदम मिलाते हुए देश की एक कंपनी के रूप में मैंने भी उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का दौर देखा और उससे बहुत कुछ सीखा। सन 1992 में डिकैनालाइजेशन का दौर आरंभ होता है और इस दौर में लौह स्क्रैप के आयात नियंत्रक के रूप में मेरी सेवाएं समाप्त होती है और मुझे भी निजी कंपनियों के साथ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा को स्वीकार करना पड़ता है। इस चुनौती को मैंने अवसर में परिवर्तित करने की दृढ़ कोशिश की और मैंने हमारे व्यवसाय में विविधता लाने और एक बहु-उत्पाद और एक बहु-कार्यात्मक संगठन के रूप में उभरने का फैसला किया। अर्थात मुझे भी अपने पुराने कलेवर को छोड़कर नए कलेवर में ढलने का मौका मिला। इसके बाद, 26 सितंबर, 1994 को आयोजित आम बैठक में शेयरधारकों द्वारा पारित विशेष प्रस्ताव के अनुसार मेरा नाम बदलकर "एमएसटीसी लिमिटेड" कर दिया गया था और 9 नवंबर, 1994 को आरओसी द्वारा नाम के इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप निगमन का एक नया प्रमाण पत्र जारी किया गया। मानो मैं बड़ा हो गया और मेरा नाम छोटा हो गया और इस छोटे नाम ने मेरे पहचान के दायरों को निरंतर विस्तार दिया। आज इसी नाम से मेरी अखिल भारतीय और वैश्विक पहचान है।

 

जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ाव के बीच अब देश और मैं दोनों सूचना प्रौद्योगिकी के युग में आ खड़े थे। सूचना प्रौद्योगिकी न केवल दुनिया को बदल रहा था बल्कि देश को भी बदलने की चुनौती दे रहा था और हम चुनौतियों से कहाँ डरने वाले थे। ऐसे में हमने सूचना प्रौद्योगिकी का दोनों हाथ फैलाकर स्वागत किया। कार्यालय में कंप्यूटर ने दस्तक दी और कार्यालय के कर्मचारियों के हाथों में मोबाइल ने। काम करने की प्रकृति में बदलाव शुरू हुआ और इस बदलाव के साथ ही मैंने भी पुरानी रीति से नीलामी करवाना छोड़ दिया। वर्ष 2002 से मैंने सभी नीलामी प्रक्रियाओं को क्रमवार इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में परिवर्तित करना आरंभ किया। फलस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में संपन्न की जाने लगी। अब हम बड़ी संख्या में सरकारी विभागों और सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थाओं को ई-नीलामी मंच प्रदान कर रहे थे। अब हम नीलामी की सूची की तैयारी से लेकर सुपुर्दगी आदेश जारी करने और ई-वॉलेट सुविधाओं के साथ-साथ विज्ञापन जारी करने तक सेवाओं का पूरा पैकेज प्रदान करने लगे थें।

 

यह वर्ष 2002 ही है जब मेरी भी एक पूर्ण सहायक कंपनी बनी। यह कंपनी थी फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड(28 मार्च 1979)। मेरे शाखाओं के साथ-साथ सहयोगियों का भी विस्तार हो रहा था। यह विस्तार दिन प्रतिदिन मेरे बढ़ते दायित्व का सूचक था।

 

समय के साथ ई-नीलामी का यह क्षेत्र दिन दोगुनी, रात चौगुनी प्रगति करने लगा। वर्ष 2004 में कोयले की ई-नीलामी के साथ शुरू करते हुए, हम विभिन्न विक्रेताओं की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ई-नीलामी के विभिन्न मॉड्यूल जैसे समूह वार नीलामी, मूल्य मात्रा नीलामी, निविदा सह नीलामी, ई-टेंडर आदि का विकास किया। हमने स्क्रैप, पुराने संयंत्र और मशीनरी, खनिज, कृषि उत्पाद, कोयला और अन्य खनिज खदानों, भू-खंड, चाय, मखाना, तेंदू पत्ते, लकड़ी और अन्य वन उत्पादों आदि की बिक्री के लिए भी ई-नीलामी आयोजित की है। ऐसे ही कार्यों का समेकित परिणाम था मेरे काम और नाम में तीव्र गति का विस्तार। फलस्वरूप वह दिन भी आया, जब भारत सरकार ने मुझे मिनी रत्न श्रेणी – 1 के सम्मान(2006) से सम्मानित किया। आगे वर्ष 2007-08 के दौरान, मुझे अनुसूची- “सी” से निकालकर अनुसूची- “बी” में शामिल किया गया और यह सम्मान हमेशा मुझे गौरव प्रदान करता है।

 

वैश्विक व्यवसाय के विस्तार के साथ-साथ अब स्क्रैप को नियंत्रित करने के स्थान पर स्क्रैप का रीसाइक्लिंग महत्त्वपूर्ण हो गया था। फलस्वरूप देश भर में रीसाइक्लिंग केद्रों की मांग बढ़ने लगी थी। यही कारण है कि मेरे अभिभावक, नियंत्रक और परामर्शदाताओं ने मुझे मेसर्स महिंद्रा इंटरट्रेड लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उद्यम गठित करने का कार्य सौंपा और एक संयुक्त उद्यम कंपनी "महिंद्रा एमएसटीसी रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड"(2016) का निर्माण हुआ। आज नॉयडा, पूणे और चैन्ने आदि अन्य क्षेत्रों में इसकी शाखाओं का विस्तार हो रहा है, जो मेरे ही विस्तार का सूचक है।

 

पिछले दो दशकों में भारत तेजी से बदला है। नई चुनौतियां सामने आई हैं और नए रास्ते खुल गए हैं। मैं नए प्रवेशकों/प्रतियोगियों के साथ-साथ अपने स्वयं के बेंचमार्क के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए हमेशा बदलते परिवेश में पला-बढ़ा हूँ। पिछले 10 वर्षों में मैं नागरिकों के बेहतर जीवन के लिए प्रमुख नई पहल करने के लिए भारत सरकार का वाहन बन गया हूँ। मैंने कोयला, लौह अयस्क, अन्य खनिजों, खनिज समृद्ध खदानों और स्पेक्ट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत और पारदर्शी आवंटन के साधन उपलब्ध कराए हैं। मैंने बिजली और कृषि उत्पादों के व्यापार के लिए मंच(प्लेटफार्म) बनाए हैं। मैंने छोटे शहरों को भारत के हवाई मानचित्र में लाने में सरकार की मदद की है, जिससे ऐसे शहरों के लोगों और व्यवसायों को बड़े शहरों में आसानी से यात्रा करने में मदद मिली है; और ये सभी सालों से चल रहे स्क्रैप के निपटान के लिए मेरी समय-परीक्षित(टाईम टेस्टेड) सेवा के अतिरिक्त हैं।

 

मैं “स्मॉल इस ब्यूटीफुल” का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हूँ। मैं आकार में छोटा हूँ, लेकिन ई-कॉमर्स जगत में बहुत-बड़ा हूँ। विकास मेरा जुनून है और उत्कृष्टता मेरी पहचान है। मेरा देश के लगभग सभी राज्यों में एक पता है, लेकिन मेरा स्थायी पता कोलकाता में है। जब भी आपको मेरी जरूरत हो, मुझे याद करना। सीमाएं मुझे रोक नहीं सकतीं, विपरीत परिस्थितियां मेरे हौसलों को कम नहीं कर सकती। मैं डिजिटल इंडिया का वाहक हूँ। मैं एमएसटीसी हूं।

 

कुल मिलाकर कहूं तो मैं भारत की सार्वजनिक संपत्ति का निष्पक्ष और पारदर्शी नीलामीकर्ता हूं, आत्मनिर्भर डिजिटल भारत का सपना हूं, किसान की फसल का ई-रकम हूं, स्वच्छ भारत मिशन का परम सहयोगी हूं, ई गवर्नेंस के जरिए ई-कॉमर्स, अर्थनीति एवं पर्यावरण का प्रोत्साहन हूं, नए भारत के निर्माण का ई-आश्वासन हूं, कचरे से कंचन बनाने की तकनीक हूं...... मैं एमएसटीसी हूं। मैं एमएसटीसी हूं। मैं एमएसटीसी हूं।